सोमवार, 31 मार्च 2014

मार्च की बात..

बस यूं ही एक चुहल


ये मार्च अभी-अभी गुज़रने वाला है। मार्च की आखिरी तारीख की सुबह है। इस साल जब ये महीना शुरु हुआ तो लग ही रहा था कि ख़राब गुज़रेगा..उतना ख़राब या अच्छा तो नहीं गुज़रा मगर हां..खटका अभी भी बाकी है क्योंकि आखिरी तारीख अभी पूरी तरह गुज़री नहीं। पहली तारीख की सुबह तन्ख्वाह एकाउंट में जमा होने का मैसेज मोबाइल पर आया था। मैं खुश था। नौकरी की ज़िंदगी में तन्ख्वाह या ऑफ का ही दिन होता है जो खुशी लाता है वरना तो मशहूर एंकर रवीश के शब्दों में..जो है सो हइये है... एकाउंट में पैसे पहुंचे ही थे और इन्हें खर्च करने की योजनाएं मगज़ में उमड़नी-घुमड़नी शुरु हुई थी कि ब्रेक लगा। हां..ब्रेक लगा..योजनाओं और बाइक दोनों  को  !! चलती बाइक से मोबाइल जो जेब में से फिसला तो फिर सड़क पर गिर दो टुकड़ों में बंट गया। किस्मत उतनी खराब नहीं थी कि मोबाइल खत्म हो जाता मगर उतनी अच्छी भी नहीं थी कि स्क्रीन ना टूटती। कुल जमा 7 हज़ार रुपए खर्च हुए तब समझ आ गया कि खर्चों को पोस्टपोन कर देना ठीक रहेगा।
बहरहाल ये तो मेरी रामकहानी है। अपने कई दोस्तों और सहयोगियों से भी सुना कि यार ये मार्च कुछ ज्यादा ही लंबा हो गया इस बार! अब मार्च जो कहीं सड़क पर टहलता मिलता तो पूछता ज़रूर कि भाई यूं लंबे हुए जा रहे हो..अब रुक भी जाओ बॉस। उसे ना मिलना था और ना वो मिला। अपनी रफ्तार से गुज़र रहा था। इस रफ्तार में जितना देख सका तो पाया कि बच्चों के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द भी यही महीना तो था। दसवीं-बारहवीं की परीक्षाओं का महीना है मार्च..अपने दिन याद आते हैं तो सिहरन आज भी दौड़ जाती है। जाने कैसे तो लोग कह देते हैं कि..आह क्या सुहाने थे वो बचपन के दिन। मुझे तो बड़ी खुशी मिलती है सोचकर कि वे दिन फिर ना आएंगे। अच्छा हो या बुरा दोनों ही तरह का वक्त कुछ यादें देकर गुज़र जाता है। होली थी..फेसबुक पर हर पोस्ट के नीचे लिखता रहा..हो-ली है...हो-कर रहेगी..!! देखकर मज़ा आया कि टैगलाइन को दोस्तों ने मशहूर कर दिया। मुझे महसूस कर खुशी ही हुई कि चलो दिल्ली आकर कुछ ना किया मगर इतना तो किया कि एकाध टैगलाइन फेसबुक पर ही मशहूर हो गई। अलबत्ता थैंकलेस जॉब की तरह क्रेडिटलेस रचना ही बनकर वो गुज़र गई। मार्च सरकारी अफसरों और प्राइवेट कंपनियों दोनों को ही थका देता है। यही साल है जब नियम-कायदों में बंधे बनिए अपना लेखाजोखा निपटाते हैं और जहां जिसको हिसाब देना होता है..झूठा-सच्चा बनाकर दे देते हैं। मुल्क में सियासत का सबसे बड़ा मेला भी लगा है। सियासी कुंभ है। देश की जनता का वक्त ना खराब हो तो पांच साल में एक ही बार आता है। इस मेले की वजह से चिल्ल-पों मची है। क्या नेता और क्या अभिनेता..जिसे देखिए व्यस्त दिख रहा है..दिख रहा है मगर कितना वाकई है नहीं पता। 
मुझे लगता है ये सब तमाम वजहें थीं जिन्होंने मार्च को लंबा कर दिया..कुछ ज़्यादा ही। खैर..जो भी था और जैसा भी था..मार्च में ब्लॉग बनाया। ब्लॉग पहले भी बनाए थे मगर इससे उम्मीद है कि ये भी मार्च की तरह कुछ लंबा चलेगा। चलो भई मार्च..फिर आना...तुम तो आओगे ही..अगर हम रहे तो मिलेंगे तुमसे...
(सुबह 4.50)

2 टिप्‍पणियां:

  1. इस पोस्ट को मार्च गर पढ़ ले तो फरवरी को कह दे रुक जाए यार, थोड़ा और ठहर, मुझे साहस जुटाने दे, में झिझक के मार तैयार नही हूँ। शर्माता हुआ वो फरवरी को ही लंबा कर दे।

    क्या खूब लिखते हो! मार्च याद रहेगा।

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  2. इस पोस्ट को मार्च गर पढ़ ले तो फरवरी को कह दे रुक जाए यार, थोड़ा और ठहर, मुझे साहस जुटाने दे, में झिझक के मार तैयार नही हूँ। शर्माता हुआ वो फरवरी को ही लंबा कर दे।

    क्या खूब लिखते हो! मार्च याद रहेगा।

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