शनिवार, 29 मार्च 2014


वो लाल इमारत..


आईआईएमसी...दिल्ली की वो लाल इमारत देखकर मेरे बदन में एक झुरझुरी-सी होती थी। उन दिनों मुझे वो इमारत पत्रकारिता के छात्रों की मक्का लगती थी। मैं उस संस्थान की प्रतिष्ठा से बेतरह प्रभावित था। वहां का छात्र होने का गौरव पाने को मैं लगभग पागल ही हो गया था। दिन-रात अखबार और पत्रिकाएं चाटा करता था। बात दो साल पहले की है जब मैंने आईआईएमसी में दो फॉर्म एक साथ भरे, ये सोचकर कि एक कोर्स में यदि एडमिशन ना भी हो सका तो दूसरे में शायद हो ही जाए। टीवी एंड रेडियो तथा हिंदी पत्रकारिता नाम के दोनों कोर्स की लिखित परीक्षा दे ड़ाली । मुझे सचमुच अंदाज़ा नहीं था कि दोनों ही लिखित परीक्षाओं में काफी अच्छे अंक मिलेंगे पर वो मिले । नतीज़तन मुझे एक नहीं बल्कि दोनों साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। आत्मविश्वास से झूमता मैं आश्वस्त था कि अब किसी एक कोर्स में तो मेरा दाखिला तय है।
   खैर, मैं इंटरव्यू के लिए उस लाल इमारत में दाखिल हुआ। टीवी एंड रेडियो कोर्स के लिए मेरा साक्षात्कार जो तीन महानुभाव (एक महिला और दो पुरुष) उस दिन ले रहे थे उन्होंने मेरा अंग्रेजी में स्वागत किया मगर मेरा जवाब हिंदी में सुनने के बाद मुझे उनकी त्यौरियां कुछ चढती-सी लगीं। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से मैंने ग्रेजुएशन किया था। उन्होंने जब मेरे फॉर्म पर उस विश्वविद्यालय का नाम पढा तो जैसे वो मेरे दुश्मन ही बन बैठे। मैं फिर भी उनके सवालों का संतोषजनक जवाब देने की कोशिश करता रहा पर ना जाने क्यों उन मैडम जी ने तो जैसे मुझे चुप करा देने की कसम खा रखी थी। मेरे जवाब से पहले वो मुझसे अगला सवाल करती रहीं। मैं कमरे से बाहर आया तो मुझे नतीजे का अंदाज़ा खूब था। बहरहाल, दूसरे इंटरव्यू को लेकर मैं फिर भी आशावान बना रहा हालांकि पहले इंटरव्यू का अनुभव इतना खौफनाक था कि मेरे मन में एक डर भी बैठ गया था।
  नियत दिन मैं दूसरे इंटरव्यू के लिए अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा था और मेरे साथ एक लड़का और एक लड़की भी थे। उस लड़की का नाम मुझे आज भी उसकी एक बेवकूफी की वजह से याद है क्यों कि वो साक्षात्कार के दिन अपने डॉक्यूमेन्ट्स तक लाना भूल गई थी। खैर, वक्त रहते उसका ब्वॉयफ्रेंड उसके डॉक्यूमेंट्स ले आया था। वो लड़की मुझसे और हमारे साथ बैठे लड़के से बात कर रही थी तो साफ लग रहा था कि लिखने-पढने जैसी किसी बात से इसका कोई ताल्लुक नहीं है। मुझे हैरानी थी कि उसने लिखित परीक्षा किस तरह पास कर ली। हमारे साथ ही आईआईएमसी का एक कर्मचारी भी बैठा था जो हमें एक-एक करके इंटरव्यू रुम में भेज रहा था। वो सज्जन आदमी हमें थोड़ा नवर्स देखकर बातें करने लगा। उसने हमें नॉर्मल करने के लिए इधर-उधर की बातें करनी शुरु कीं मगर इसी बीच हमारे साथ बैठी लड़की को उसके बाहर खड़े ब्वॉयफ्रेंड ने अपने पास इशारे से बुलाया। कर्मचारी उस लड़के को देखकर चौंका और लड़की के बाहर जाते ही हमसे बोला कि ये लड़का यहीं पिछले बैच में था और मैं इसे जानता हूं। ये पक्का यहां पर इस लड़की की सिफारिश लेकर आया है,मगर इसकी सिफारिश नहीं चलेगी क्योंकि इंटरव्यू पैनल में बैठे साहब बड़े सख्त हैं। खैर..लड़की का इंटरव्यू हमसे पहले हुआ और वो बाहर आकर मुंह बनाते हुए यही बोली कि बस ठीक ही हुआ। हमारा डर दोगुना हो गया मगर करना तो था ही तो बाकी बचे हम दोनों ने इंटरव्यू पूरा कर ही लिया। हम दोनों ही इंटरव्यू से खुश थे क्योंकि मेरा अनुभव इस बार पिछले इंटरव्यू जैसा भयानक नहीं था। फिर एक दिन नतीजा आया नतीजा आया और मैंने देखा कि हम दोनों लड़कों का नाम लिस्ट में नहीं था पर उस लड़की का नाम ज़रुर था। मुझे समझ आ गया कि अंदर बैठे साहब की सख्ती उस दिन पिघघल गई थी और उन्होंने सिफारिश मान ली थी।
   उन्हीं दिनों मेरी दोस्ती इंटरनेट के माध्यम से  एक लड़के से हुई जो आईआईएमसी के उसी बैच का स्टूडेन्ट था जिसमें वो लड़की भी थी। कुछ दिनों बाद जब हमारी दोस्ती अच्छी हो गई तो मैंने एक दिन फोन पर उसी लड़की का ज़िक्र किया तो वो भी तपाक से बोला कि- अरे हां, वो लड़की तो बेवकूफ है क्योंकि एक दिन क्लास में पूछे जाने पर वो बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम तक नहीं बता सकी थी। फिर मैंने उससे इंटरव्यू के दौरान घटी बातें बताईं। उसने कतई हैरानी नहीं जताई और बताया कि उस लड़की का वही ब्वॉयफ्रेंड अब भी वहां खूब आता-जाता है और ये इस तरह का पहला मामला नहीं है। आईआईएमसी की उसी क्लास में उस साल ऐसे और भी भावी पत्रकार एडमिशन पा चुके थे जिनके पास जुगाड़ नाम का सफल औज़ार था। बाद में ऐसे और भी अनेक वाकये हुए जिनसे मुझे आईआईएमसी में एडमिशन के लिए जुगाड़ की महिमा का ज्ञान हुआ। आज भी मेरी फाइलों के बीच पड़ा आईआईएमसी का इंटरव्यू लैटर मेरे बदन में वैसी ही झुरझुरी पैदा करता है जैसी कभी मुझे वो लाल इमारत देखकर होती थी,बस अब वजह कुछ और है...

1 टिप्पणी:

  1. बेहद दुःखद! यह हर जगह हो रहा है। इस वजह से भी कितने ही लायक उम्मीदवार न सिर्फ पीछे रह जाते हैं बल्कि भविष्य के लिए उनकी सकारात्मक शक्ति ही जीर्ण-शीर्ण हो जाती है। यह एक विशेष तरह का ठगा-सा अनुभव है, जिसको मेरे विचार में अपनी सकारात्मक सोच के बक्से में उस दिन तक के लिए कैद करके रखा जाना चाहिए जब हम ऐसे वाकिये को पीछे मुड़कर देखें और खुश होएं कि शुक्र है मेरे साथ ऐसा हुआ और अब मैं अपनी सफलता के इस पायदान पर यहाँ खड़ा हूँ जहाँ वरना नहीं पहुंच पाता।

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