ज़िंदगी में कितनी ही बार ऐसे मौके आए जब कुछ कहना चाहा लेकिन यही सोचकर चुप रह गया कि अब नहीं, थोड़ा रुक कर कहेंगे। रुक कर कहना चाहता भी था लेकिन वक्त की तो अपनी रफ्तार है और किस्मत का अपना लिखा..जो रह गया सो तो रह ही गया। कितनी बार दिल के अंधेरे कोनों में रह गई वो बात अचानक सामने आती तो मैं चौंक भी पड़ता..अरे तुम अभी यहीं हो! मुझे लगा मिट चुकी होंगी!!!
पाया मैंने कि बात वही रह जाती है जो कही नहीं गई। दिल में जड़ ज़्यादा वही बात जमाती है जो बाहर निकली ही नहीं। कितने शुक्रिया रह गए..कितनी साॅरी रह गई..कितनी तारीफें रह गईं और कितनी ही गालियां भी..हां गालियां भी।
अब कई काम करता हूँ तो लोग पूछते हैं कि इतनी जल्दी क्यों..लेकिन मुझे तो हैरत है कि जल्दी या देर का पता कैसे चल जाता है। ये जब होना था तभी हो रहा है। इससे पहले मौका नहीं था या मन नहीं था। आखिर ज़िंदगी की राह किस मोड़ खत्म हो जाए जानता ही कौन है इसलिए जब जिसे जो दिल की बात कह देनी हो वो कहता हूँ। जब जो करने का मन हो तो बहुत असुविधा ना होने पर करता ही हूँ। कुछ बकाया रखने का मन नहीं होता। सब हिसाब आज ही बराबर करते चलने को दिल चाहता है। कब तक जारी रख सकूँगा देखता हूँ।
बुधवार, 28 मई 2014
कोई बात नहीं बकाया..
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बिल्कुल सही लिखा आपने।
जवाब देंहटाएंआज जो शब्द आए हैं उनका दिन भी आज ही होना सही है।
अच्छा तो अभी ब्लागर बने हो भाइ। बधाइ।
जवाब देंहटाएंले आउट चेंज कर दो अन्य सूचनाएं मुश्किल से दिखाइ पड़ती है।
कुछ भी सुविधा चाहिये तो मेरे ब्लाग से ले लो http://anchinharakharkolkata.blogspot.in
bohot badhiya...
जवाब देंहटाएंह्रदय परिवर्तन कर देने वाली बातें लिख दी आपने तो ...
जवाब देंहटाएंसही कहा कुछ बकाया नही रखना चाहिए इसलिए आज फाइनली कमेंट्स कर ही दिये..आप अच्छा लिखते है,ये आप भी जानते हैं,बस यूँ ही लिखते रहिए..
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