बुधवार, 27 दिसंबर 2017

जब चंद्रास्वामी ने ब्रिटेन के अगले पीएम की भविष्यवाणी की..

साल 1975 की गर्मियां थीं। कुंवर नटवर सिंह ब्रिटेन में उन दिनों भारतीय उप उच्चायुक्त के तौर पर काम कर रहे थे। इस पद पर नौकरी करनेवाले के पास कई ज़िम्मेदारियां होती हैं, जिनमें से एक है अपने देश से आए नामी-गिरामी लोगों की मुरादें पूरी करना। नटवर सिंह को नहीं मालूम था कि इन गर्मियों में उन्हें एक 27-28 साल के तांत्रिक की मेज़बानी अनमना होकर ही सही लेकिन करनी पड़ेगी। वो दौर राजस्थान के तांत्रिक चंद्रास्वामी के उभार का था। नौजवानी के दिनों में ही वो ना सिर्फ अपने क्षेत्र में नाम कर चुके थे बल्कि सियासी जमात में भी वो जाना पहचाना नाम थे, हालांकि उनका सुनहरा दौर अभी आना बाकी था।



बहरहाल, चंद्रास्वामी ने लंदन पहुंचकर नटवर सिंह से मुलाकात की। फिर एक दिन उन्हें और उनकी पत्नी को भोजन पर बुला लिया। इस मुलाकात में चंद्रास्वामी अपनी विद्या के बल पर नटवर सिंह की पत्नी को प्रभावित करने में कामयाब रहे। हां, नटवर सिंह को चंद्रास्वामी के तौर तरीके कुछ खास पसंद नहीं आए। कुछ ही दिन बाद भारत के विदेशमंत्री वाई बी चव्हाण कुछ देर के लिए लंदन के हीथ्रो पहुंचे। नटवर सिंह मुलाकात के लिए वहां गए। बातचीत के दौरान नटवर सिंह ने चव्हाण को बताया कि चंद्रास्वामी मुझसे लॉर्ड माउंटबेटन और मार्गरेट थैचर से मुलाकात करने की गुज़ारिश कर रहे हैं। चव्हाण ने नटवर की उम्मीद के खिलाफ जाते हुए इन मुलाकातों के लिए हरी झंडी दे दी। नटवर सिंह फंस चुके थे। मन मारकर उन्होंने भारत के आखिरी अंग्रेज़ गवर्नर जनरल रहे माउंटबेटन को फोन मिला दिया। माउंटबेटन ने मुलाकात की इच्छा तो जताई लेकिन साथ ही खेद भी प्रकट कर दिया क्योंकि वो अगले ही दिन छुट्टी मनाने के लिए उत्तरी आयरलैंड के लिए रवाना हो रहे थे। नटवर सिंह को राहत ही मिली। उन्होंने चंद्रास्वामी को बता दिया कि माउंटबेटन से मुलाकात संभव नहीं है। ज़रा मायूस हुए युवा चंद्रास्वामी ने थैचर से मिलने की इच्छा जताई। उस वक्त मार्गरेट थैचर इंग्लैंड की विपक्षी कंज़र्वेटिव पार्टी की नेता नियुक्त हुई थीं। नटवर सिंह मुलाकात कराने को लेकर यूं भी मन से तैयार नहीं थे लेकिन उनके सामने संकट था। उन्हें डर था कि अगर मुलाकात के दौरान युवा तांत्रिक ने कोई अभद्र या असभ्य व्यवहार कर डाला तो वो खुद भी थैचर के सामने बेवकूफ नज़र आएंगे। बहरहाल, नटवर सिंह ने समय मांगा और वो मिल भी गया। थैचर को नटवर सिंह ने चंद्रास्वामी का संक्षिप्त परिचय दे दिया था लेकिन थैचर समझ नहीं पा रही थीं कि आखिर चंद्रास्वामी उनसे मिलना क्यों चाहते हैं। सच तो ये है कि थैचर की भी उस मुलाकात में कोई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन भारतीय उपउच्चायुक्त की तरफ से आए निवेदन पर उन्हें दस मिनट खर्चने में कोई बुराई नहीं लगी। अगले हफ्ते नटवर सिंह चंद्रास्वामी को लेकर हाउस ऑफ कॉमंस के दफ्तर पहुंच गए। हाउस ऑफ कॉमंस को आप ब्रिटेन की लोकसभा समझें। थैचर वहीं एक छोटे से कार्यालय में बैठती थीं। चंद्रास्वामी ने मुलाकात से पहले पूरी तैयारी कर ली। साधु का पूरा वेष धर कर उन्होंने माथे पर चौड़ा तिलक लगाया। हाथ में छड़ी ले ली और गले में रुद्राक्ष की माला डाल ली। नटवर सिंह चंद्रास्वामी के इस रंग ढंग से बहुत असहज महसूस कर रहे थे, लेकिन चंद्रास्वामी तो अपनी धुन में मस्त पूरे आत्मविश्वास से लबरेज़ होकर शाही गलियारों में चल रहे थे। लोग उन्हें देख रहे थे और चंद्रास्वामी इस बात का आनंद उठा रहे थे।
दोनों थैचर के कमरे में पहुंचे। उनके संसदीय सचिव एडम बटलर भी कमरे में मौजूद थे। जान पहचान का छोटा सा दौर चला जिसके बाद शायद मार्गरेट थैचर ने मुलाकात जल्दी निबटाने के इरादे से सीधे पूछ लिया कि चंद्रास्वामी उनसे मिलना क्यों चाहते थे...
अंग्रेज़ी से अनजान तांत्रिक चंद्रास्वामी के लिए अनुवादक का काम नटवर सिंह को करना था। चंद्रास्वामी जल्दी में भी नहीं थे। उन्होंने इत्मीनान से कहा- जल्द ही आपको पता चल जाएगा। थैचर ने इस अजीब से तांत्रिक को देखकर कहा- मैं इंतज़ार कर रही हूं। घड़ी की सुइयां अपनी गति से बढ़ रही थीं। मुलाकात के लिए दस मिनट का वक्त मुकर्रर हुआ था। चंद्रास्वामी अपनी अदाओं से वक्त खत्म कर रहे थे। कुछ देर में चंद्रास्वामी ने एक पेपर और पैन की मांग की। इसके बाद उन्होंने कागज़ फाड़कर थैचर के हाथ में पांच पर्चियां पकड़ा दीं और कहा कि वो कोई भी पांच अलग अलग सवाल इन पर्चियों में लिखकर रख लें । नटवर सिंह थैचर के चेहरे पर चिढ़ का एक हल्का सा भाव देख पा रहे थे लेकिन कुछ कर पाने में असमर्थ थे। चंद्रास्वामी फॉर्म में थे। उन्होंने सवाल लिखी पर्चियों को मुचड़कर गेंद जैसा बना देने को कहा। अब चंद्रास्वामी ने थैचर से कहा कि वो पांचों में से एक पर्ची खोलकर अपना सवाल देख लें। थैचर ने देखा और उधर चंद्रास्वामी ने हिंदी में बताया कि थैचर ने लिखा क्या था। नटवर सिंह ने अनुवाद कर दिया। थैचर के चेहरे से अचानक चिढ़ गायब होने लगी। उसकी जगह अब उत्सुकता थी। ज़ाहिर है, चंद्रास्वामी का निशाना ठीक लगा था। इसके बाद अगला सवाल भी चंद्रास्वामी ने ठीक बताया। चौथे सवाल तक आते-आते तो थैचर की भाव भंगिमा पूरी तरह से बदल गई थी। चंद्रास्वामी का उम्दा प्रदर्शन नटवर सिंह की लाज बचा रहा था। अब तक थैचर अपने सोफे के किनारे तक आ पहुंची थीं। चंद्रास्वामी ने भी संकोच छोड़कर अपनी चप्पेलें उतारीं और सोफे पर पद्मासन में जम गए। नटवर सिंह को कुछ बुरा लगा लेकिन वो थैचर को देखकर हैरान थे क्योंकि अब चंद्रास्वामी के तेवर उन्हें परेशान नहीं कर रहे थे। वो तो अब उनसे और सवाल करना चाहती थीं, लेकिन अब बारी चंद्रास्वामी की थी। कुछ जवाब देने के बाद अचानक चंद्रास्वामी ने बड़ी ही अदा से घोषणा कर दी कि अब वो किसी सवाल का जवाब नहीं देंगे क्योंकि सूर्य अस्त हो चुका है। बेचारे नटवर सिंह इस बात का अनुवाद करने से पहले झेंप गए। वो विपक्ष की नेता के सामने बैठे थे और चंद्रास्वामी अब तेवर दिखाने पर आमादा थे। खैर, नटवर सिंह ने इस बात का भी अनुवाद कर डाला। एक बार फिर नटवर सिंह के हैरान होने की बारी थी। मार्गरेट थैचर उनसे चंद्रास्वामी के साथ एक और मुलाकात का निवेदन कर रही थीं। नटवर सिंह इस पासा उलट के लिए कहां तैयार थे, मगर चंद्रास्वामी तो चंद्रास्वामी थे। उन्होंने कहा- मंगलवार को दोपहर ढाई बजे नटवर सिंह जी के घर पर।
ब्रिटेन की आला नेता को इस तरह वक्त दिए जाने की ढीठता पर नटवर की नाराज़गी दबी नहीं रही। उन्होंने चंद्रास्वामी को हरकतों से बाज़ आने को कहा और बोले कि वक्त देने से पहले कम से कम थैचर से उनकी सुविधा तो पूछ लो, आखिर ये हिंदुस्तान तो नहीं है, लेकिन अब चंद्रास्वामी कहां मानने वाले थे। उन्होंने नटवर सिंह से कहा- कुंवर साहब, अनुवाद कर दीजिए और फिर देखिए। नटवर सिंह खुद कहते हैं कि मैं तो हैरत में ही पड़ गया जब थैचर ने मेरे घर का पता पूछा , लेकिन अभी हैरान होने का सिलसिला पूरा नहीं हुआ था। चलने से पहले जाने कहां से चंद्रास्वामी ने अपने हाथ में ताबीज़ निकाल लिया। बोले कि इनसे कहिए जब मुझसे मिलने आएं तो ये ताबीज़ बाईं बाजू में पहनकर आएं। नटवर सिंह गुस्से से धधक रहे थे। उन्हें लग रहा था कि किसी ना किसी बेवकूफी पर डांटा ही जानेवाला है। साफ कह दिया कि इस देहाती बकवास का अनुवाद मैं नहीं करनेवाला। थैचर ने हस्तक्षेप करते हुए पूछा कि साधु महाराज क्या कह रहे हैं। बेचारे नटवर सिंह ने सहमते हुए कहा - मैं माफी चाहता हूं मिसेज थैचर लेकिन चंद्रास्वामी चाहते हैं कि आप इस ताबीज़ को अपनी बाईं बाजू में बांधकर आएं।
थैचर ने चुपचाप वो ताबीज़ लेकर रख लिया। चंद्रास्वामी और नटवर सिंह ने अब थैचर से जाने की अनुमति मांगी मगर चंद्रास्वामी को ना जाने क्या सूझा कि फिर बोले- कुंवर साहब, कृपया थैचर जी से कहिए कि मंगलवार को उन्हें लाल रंग की पोशाक पहननी चाहिए। अब नटवर सिंह बिलकुल सहने के मूड में नहीं थे। उनका मन हुआ कि वहीं चंद्रास्वामी की पिटाई शुरू कर दें लेकिन वो फंस चुके थे। उन्होंने चंद्रास्वामी को समझाया कि किसी महिला को उसके पहनावे के लिए कुछ कहना अभद्रता है। थैचर हिंदी में हो रही बातचीत नहीं समझ पा रही थीं लेकिन दोनों के चेहरे देख ज़रूर रही थीं। ना चाहते हुए भी नटवर सिंह ने फर्श की तरफ ताकते हुए अनुवाद कर डाला। अगले मंगलवार दोपहर ठीक ढाई बजे ब्रिटेन की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी की नेता और भविष्य में इंग्लैंड की आयरन लेडी बननेवाली मार्गरेट थैचर नटवर सिंह के घर के दरवाज़े पर खड़ी थीं। वो ना लाल पोशाक पहनना भूली थीं और ना ताबीज़ बांधना। गदगद चंद्रास्वामी ने उस दिन थैचर के ना जाने कितने सवालों के जवाब खुशी खुशी दिए। फिर थैचर ने असली सवाल पूछा कि वो कभी प्रधानमंत्री बन सकेंगी या नहीं... चंद्रास्वामी ने उन्हें निराश नहीं किया। कहा- आप पीएम बन जाएंगी और नौ, ग्यारह या तेरह साल तक पद पर रहेंगी।
थैचर को अपने पीएम बनने पर तो यकीन था लेकिन उन्हें कार्यकाल की अवधि ज़्यादा लगी। खैर, उन्होंने आखिरी सवाल पूछा । वो जानना चाहती थीं कि वो पीएम बनेंगी कब तक। तांत्रिक चंद्रास्वामी के पास इस सवाल का भी जवाब था, उन्होंने कहा- अगले साढ़े तीन साल में। ठीक साढ़े तीन साल बाद थैचर अपने देश की प्रधानमंत्री बनीं और वो भी ग्यारह साल के लिए।
खैर, इस मुलाकात के बाद जब थैचर 1979 में पीएम बनकर कॉमनवेल्थ समिट में भाग लेने ज़ांबिया के लुसाका पहुंचीं तो नटवर सिंह भी वहीं थे। जब थैचर ने नटवर सिंह और उनकी पत्नी से मुलाकात की तो नटवर धीरे से फुसफुसाए- “Our man proved right.”
थैचर पल भर के लिए घबराई हुई दिखीं। नटवर सिंह को तुरंत अलग ले जाकर बोलीं, हाई कमिश्नर महोदय, हम इस बारे में बात नहीं करेंगे। नटवर सिंह ने भी अदब से जवाब दिया- कतई नहीं करेंगे प्राइम मिनिस्टर साहिबा, कतई नहीं।
इति इतिहास श्रृंखला
(नटवर सिंह की किताब Walking with Lions — Tales from a Diplomatic Past और इंडियन एक्सप्रेस ऑनलाइन से साभार)








1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन मिर्जा ग़ालिब और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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