1983 साल था, महीना मार्च का। दिल्ली से सर्दी विदा हो चुकी थी लेकिन 140 देशों से मेहमानों का आना जारी था। इंदिरा गांधी और नटवर सिंह के कंधों पर सातवें गुटनिरपेक्ष आंदोलन की भारी ज़िम्मेदारी थी। नटवर इस सम्मेलन के सेक्रेटरी जनरल थे इसलिए वो खासतौर से परेशान थे। जल्दबाज़ी में भारत को मेज़बानी मिली थी और ये उन पर था कि वो किसी तरह कार्यक्रम को कामयाबी से निपटा दें। अचानक उन्हें खबर मिली कि फिलिस्तीन मुक्ति संगठन के नेता यासिर अराफात नाराज़गी में वापस लौटना चाहते हैं। नटवर सिंह के तो हाथ पांव ही फूल गए। नाराज़गी की वजह जाननी चाही तो पता चला कि जॉर्डन के शाह को पहले भाषण देने का मौका मिलने की वजह से अराफात गुस्सा गए थे। नटवर सिंह अराफात के तेवरों से परिचित थे। जानते थे कि वो उनके मनाने से नहीं माननेवाले। उन्होंने तुरंत इंदिरा गांधी से विज्ञान भवन आने की विनती की जहां आयोजन हो रहा था। नटवर सिंह ने उनसे फिदेल कास्त्रो को भी साथ लेते आने को कहा। फिदेल कास्त्रो पहुंचे और यासिर अराफात को फोन करके बुलाया। नाराज़ अराफात से फिदेल ने पूछा कि वो इंदिरा गांधी को अपना दोस्त मानते हैं या नहीं..
अराफात ने तपाक से कहा कि वो मेरी दोस्त नहीं, बड़ी बहन हैं। बस, कास्त्रो को मौका मिल गया, बोले- फिर छोटे भाई की तरह बर्ताव करो और सम्मेलन में हिस्सा लो। यासिर अराफात दोनों का ही बहुत सम्मान करते थे। उन्होंने ज़िद छोड़ दी और सम्मेलन में हिस्सा लिया। इसी सम्मेलन के दौरान एक फोटो बहुत ही मशहूर हुआ। ये फोटो तब लिया गया जब फिदेल कास्त्रो ने इंदिरा गांंधी को गले लगा लिया। फिदेल कास्त्रो जवाहरलाल नेहरू की बहुत ज़्यादा इज़्ज़त करते थे और इसीलिए इंदिरा के प्रति उनका विशेष स्नेह था।
एक किस्सा नटवर सिंह बताते हैं। वो 1982 में क्यूबा की राजधानी हवाना गए थे। उनके ऊपर 1983 के गुटनिरपेक्ष सम्मेलन के आयोजन की ज़िम्मेदारी थी। 1979 में क्यूबा ये आयोजन कर चुका था इसलिए वो वहां जाकर कुछ टिप्स लेना चाहते थे। उन्होंने क्यूबा जाकर फिदेल कास्त्रो से मुलाकात का समय नहीं मांगा था लेकिन अचानक ही दौरे के आखिरी दिन उन्हें कहा गया कि फिदेल आपसे मिलना चाहते हैं। सकुचाते हुए नटवर सिंह उनके सामने जा पहुंचे। फिदेल कास्त्रो ने उनसे सीधा पूछा- 'ये गोरखा कौन हैं और ये फॉकलैंड में क्या कर रहे हैं ?' दरअसल उस वक्त फॉकलैंड द्वीपसमूह में गोरखा लोग ब्रिटेन की तरफ से अर्जेंटीना को ज़बरदस्त टक्कर दे रहे थे। नटवर सिंह ने कास्त्रो को गोरखाओं के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी और बताया कि वो बेहद बहादुर योद्धा हैं जो अधिकतर नेपाल से आते हैं लेकिन ब्रिटिश आर्मी के लिए वो इतने अहम हैं कि वहां आज भी गोरखा रेजिमेंट है। इसके बाद नटवर सिंह ने पूछा कि फिदेल कास्त्रो गोरखाओं को लेकर जिज्ञासु क्यों हैं तो उन्होंने पर्वतारोही मॉरिस हरज़ोग की किताब अन्नपूर्णा के बारे में बताया जिसमें गोरखाओं का ज़िक्र था। किताब फिदेल कास्त्रो ने पढ़कर खत्म ही की थी। नटवर सिंह ने एक बार फिदेल कास्त्रो से जवाहरलाल नेहरू और उनकी पहली मुलाकात के बारे में पूछा। फिदेल ने बताया कि साल 1960 में जब वो संयुक्त राष्ट्र संघ की 15वीं सालगिरह पर न्यूयॉर्क पहुंचे तो कोई होटल उन्हें कमरा देने को तैयार नहीं था। एक दिन के लिए तो वो क्यूबा के दूतावास में रुक गए लेकिन अगले दिन उन्होंने अपनी नाराज़गी संयुक्त राष्ट्र महासचिव डैग हैमरशोल्ड के सामने ज़ाहिर कर दी। फिदेल ने साफ कहा कि या तो मेरे और मेरे लोगों के रहने का इंतज़ाम कीजिए वर्ना संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रांगण में मैं तंबू डालकर रहूंगा। इस चेतावनी के बाद उन्हें हारलेम के एक होटल ने रहने की जगह दे दी गई। फिदेल कास्त्रो ने नटवर सिंह को बताया कि हर जगह उनके साथ किए गए इस व्यवहार पर खबरें बन रही थीं। जैसे ही फिदेल कास्त्रो को होटल में कमरा मिला उनसे मिलने सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू आए। 34 साल के नौजवान फिदेल कास्त्रो अमेरिकियों के इस व्यवहार से निराश थे पर नेहरू ने उनका हौसला बढ़ाया। खुद कास्त्रो ने नटवर सिंह से कहा कि वो उस वक्त नेहरू के दिए हौसले को ज़िंदगी भर नहीं भुला सके।
साल 1991 की बात है। सोवियत यूनियन बिखर गया था। क्यूबा का अमेरिका से झगड़ा रहा था इसलिए अमेरिका ने उस पर तमाम तरह के प्रतिंबध लगा रखे थे। क्यूबा कितने ही देशों से खाना वगैरह नहीं ले सकता था। ऐसे में भूख से परेशान क्यूबा पर कम्यूनिस्ट नेता हरकिशन सिंह सुरजीत का ध्यान गया। उन्होंने पार्टी की तरफ से क्यूबा को दस हज़ार टन गेहूँ भिजवाने की ज़िम्मेदारी ले ली। लोगों से अनाज और पैसा जमा किया गया। सुरजीत ने पंजाब से गेंहू लदी विशेष ट्रेन कोलकाता बंदरगाह पहुंचाई। नरसिम्हाराव सरकार ने भी सुरजीत की अपील पर इतना ही गेहूं और मंगवाया और कैरिबियन प्रिंसेज़ नाम के जहाज पर लदवा दिया। दस हज़ार साबुन भी रखवाए गए। जब जहाज क्यूबा पहुंचा तो फिदेल कास्त्रो ने खासतौर पर सुरजीत को न्यौता भेजा। तब फिदेल कास्त्रो ने कहा था कि अब क्यूबा कुछ दिनों तक सुरजीत सोप और सुरजीत ब्रेड से ज़िंदा रहेगा।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यपाल रहीं मारग्रेट अल्वा भी फिदेल कास्त्रो के साथ हुई अपनी मुलाकातों के बारे में बताती हैं। उन्होंने एक मज़ेदार किस्सा बीबीसी को बताया था। उन्होंने बताया कि एक बार भोज के बाद फिदेल कास्त्रो ने उनसे उनका वज़न पूछा। अल्वा ने कहा कि मैं आपको अपने वज़न के बारे में क्यों बताऊं। हमारे यहाँ भारत में कहावत है कि उस चीज़ के बारे में हरगिज़ न बताया जाए जिसे साड़ी छुपा सकती है। इससे कई पाप छुपाए जा सकते हैं।
अल्वा की बात पर फिदेल कास्त्रो ज़ोर से हंसे और उनकी कमर पर हाथ रखकर बोले कि मैं तुम्हें उठाकर भी बता सकता हूं कि तुम्हारा वज़न कितना है। अल्वा ने फिदेल को ऐसा करने से मना किया। बोलीं- यॉर एक्सलेंसी आप ऐसा मत करिए. आप जितना सोचते हैं उससे मैं कहीं ज़्यादा भारी हूँ। इससे पहले कि वाक्य पूरा हो पाता अल्वा ज़मीन से एक फ़ुट ऊपर थीं। फिदेेल कास्त्रो ज़ोर से हंसे और बोले- अब मुझे मालूम है कि तुम्हारा वज़न कितना है। अल्वा बेचारीं शर्म से लाल हो गईं।
मारग्रेट अल्वा एक और किस्सा बताती हैं। एक बार फिदेल कास्त्रो ने उनसे पूछा कि स्पेनिश लोग क्यूबा में न उतर कर यदि भारत में उतरे होते तो इतिहास क्या होता? (कोलंबस ने क्यूबा खोजा था जबकि वो भारत खोज रहा था)। अल्वा ने तुरंत कहा कि तब आप भारतीय होते। ये बात सुनते ही फिदेल कास्त्रो ठहाका लगाने लगे। ज़ोर -ज़ोर से मेज़ थपथपाकर बोले कि ये मेरे लिए खुशकिस्मती की बात होती! भारत एक महान देश है।
मारग्रेट अल्वा का ही कहना है कि फिदेल कास्त्रो को काफी पहले ये पता चल गया था कि वीपी सिंह ने राजीव गांधी की कुर्सी पलटने की तैयारी कर ली है।अल्वा उस वक्त मैक्सिको गई थीं और जल्दबाज़ी में क्यूबा पहुंची थीं। ये वो दौर था जब वीपी को राजीव के बहुत करीब माना जाता था। फिदेल कास्त्रो की खुफिया एजेंसी बहुत तेज़ तर्रार थी और माना जाता है कि उसने ही कास्त्रो तक खबर पहुंचाई थी। मारग्रेट अल्वा ने ये बात अपनी किताब 'करेज ऐंड कमिंटमेंट' में लिखी है कि फिदेल कास्त्रो ने उनसे कहा था कि स्वदेश लौटकर राजीव को कहना कि अपने वित्तमंत्री पर भरोसा ना करें। वो खतरनाक है और भरोसे के काबिल नहीं है। वो राजीव की पीठ में छुरा घोंपेगा। बहरहाल मारग्रेट अल्वा ने उन्हें उलटा समझाने की कोशिश ही की। बाद में अल्वा ने ये बात राजीव को बताई तो राजीव भी हंसे और उल्टे मारग्रेट अल्वा से सवाल किया कि कास्त्रो भारत के बारे में क्या जानते हैं? आगे चलकर जब वीपी ने अपनी चाल चल दी तब मारग्रेट अल्वा ने राजीव को फिदेल कास्त्रो की चेतावनी याद दिलाई। वे चुप रह गए।
(जानकारी वन लाइफ इज़ नॉट एनफ,करेज ऐंड कमिंटमेंट, इंडियन एक्सप्रेस और बीबीसी से )
(इति इतिहास श्रृंखला)
अराफात ने तपाक से कहा कि वो मेरी दोस्त नहीं, बड़ी बहन हैं। बस, कास्त्रो को मौका मिल गया, बोले- फिर छोटे भाई की तरह बर्ताव करो और सम्मेलन में हिस्सा लो। यासिर अराफात दोनों का ही बहुत सम्मान करते थे। उन्होंने ज़िद छोड़ दी और सम्मेलन में हिस्सा लिया। इसी सम्मेलन के दौरान एक फोटो बहुत ही मशहूर हुआ। ये फोटो तब लिया गया जब फिदेल कास्त्रो ने इंदिरा गांंधी को गले लगा लिया। फिदेल कास्त्रो जवाहरलाल नेहरू की बहुत ज़्यादा इज़्ज़त करते थे और इसीलिए इंदिरा के प्रति उनका विशेष स्नेह था।
एक किस्सा नटवर सिंह बताते हैं। वो 1982 में क्यूबा की राजधानी हवाना गए थे। उनके ऊपर 1983 के गुटनिरपेक्ष सम्मेलन के आयोजन की ज़िम्मेदारी थी। 1979 में क्यूबा ये आयोजन कर चुका था इसलिए वो वहां जाकर कुछ टिप्स लेना चाहते थे। उन्होंने क्यूबा जाकर फिदेल कास्त्रो से मुलाकात का समय नहीं मांगा था लेकिन अचानक ही दौरे के आखिरी दिन उन्हें कहा गया कि फिदेल आपसे मिलना चाहते हैं। सकुचाते हुए नटवर सिंह उनके सामने जा पहुंचे। फिदेल कास्त्रो ने उनसे सीधा पूछा- 'ये गोरखा कौन हैं और ये फॉकलैंड में क्या कर रहे हैं ?' दरअसल उस वक्त फॉकलैंड द्वीपसमूह में गोरखा लोग ब्रिटेन की तरफ से अर्जेंटीना को ज़बरदस्त टक्कर दे रहे थे। नटवर सिंह ने कास्त्रो को गोरखाओं के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी और बताया कि वो बेहद बहादुर योद्धा हैं जो अधिकतर नेपाल से आते हैं लेकिन ब्रिटिश आर्मी के लिए वो इतने अहम हैं कि वहां आज भी गोरखा रेजिमेंट है। इसके बाद नटवर सिंह ने पूछा कि फिदेल कास्त्रो गोरखाओं को लेकर जिज्ञासु क्यों हैं तो उन्होंने पर्वतारोही मॉरिस हरज़ोग की किताब अन्नपूर्णा के बारे में बताया जिसमें गोरखाओं का ज़िक्र था। किताब फिदेल कास्त्रो ने पढ़कर खत्म ही की थी। नटवर सिंह ने एक बार फिदेल कास्त्रो से जवाहरलाल नेहरू और उनकी पहली मुलाकात के बारे में पूछा। फिदेल ने बताया कि साल 1960 में जब वो संयुक्त राष्ट्र संघ की 15वीं सालगिरह पर न्यूयॉर्क पहुंचे तो कोई होटल उन्हें कमरा देने को तैयार नहीं था। एक दिन के लिए तो वो क्यूबा के दूतावास में रुक गए लेकिन अगले दिन उन्होंने अपनी नाराज़गी संयुक्त राष्ट्र महासचिव डैग हैमरशोल्ड के सामने ज़ाहिर कर दी। फिदेल ने साफ कहा कि या तो मेरे और मेरे लोगों के रहने का इंतज़ाम कीजिए वर्ना संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रांगण में मैं तंबू डालकर रहूंगा। इस चेतावनी के बाद उन्हें हारलेम के एक होटल ने रहने की जगह दे दी गई। फिदेल कास्त्रो ने नटवर सिंह को बताया कि हर जगह उनके साथ किए गए इस व्यवहार पर खबरें बन रही थीं। जैसे ही फिदेल कास्त्रो को होटल में कमरा मिला उनसे मिलने सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू आए। 34 साल के नौजवान फिदेल कास्त्रो अमेरिकियों के इस व्यवहार से निराश थे पर नेहरू ने उनका हौसला बढ़ाया। खुद कास्त्रो ने नटवर सिंह से कहा कि वो उस वक्त नेहरू के दिए हौसले को ज़िंदगी भर नहीं भुला सके।
साल 1991 की बात है। सोवियत यूनियन बिखर गया था। क्यूबा का अमेरिका से झगड़ा रहा था इसलिए अमेरिका ने उस पर तमाम तरह के प्रतिंबध लगा रखे थे। क्यूबा कितने ही देशों से खाना वगैरह नहीं ले सकता था। ऐसे में भूख से परेशान क्यूबा पर कम्यूनिस्ट नेता हरकिशन सिंह सुरजीत का ध्यान गया। उन्होंने पार्टी की तरफ से क्यूबा को दस हज़ार टन गेहूँ भिजवाने की ज़िम्मेदारी ले ली। लोगों से अनाज और पैसा जमा किया गया। सुरजीत ने पंजाब से गेंहू लदी विशेष ट्रेन कोलकाता बंदरगाह पहुंचाई। नरसिम्हाराव सरकार ने भी सुरजीत की अपील पर इतना ही गेहूं और मंगवाया और कैरिबियन प्रिंसेज़ नाम के जहाज पर लदवा दिया। दस हज़ार साबुन भी रखवाए गए। जब जहाज क्यूबा पहुंचा तो फिदेल कास्त्रो ने खासतौर पर सुरजीत को न्यौता भेजा। तब फिदेल कास्त्रो ने कहा था कि अब क्यूबा कुछ दिनों तक सुरजीत सोप और सुरजीत ब्रेड से ज़िंदा रहेगा।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यपाल रहीं मारग्रेट अल्वा भी फिदेल कास्त्रो के साथ हुई अपनी मुलाकातों के बारे में बताती हैं। उन्होंने एक मज़ेदार किस्सा बीबीसी को बताया था। उन्होंने बताया कि एक बार भोज के बाद फिदेल कास्त्रो ने उनसे उनका वज़न पूछा। अल्वा ने कहा कि मैं आपको अपने वज़न के बारे में क्यों बताऊं। हमारे यहाँ भारत में कहावत है कि उस चीज़ के बारे में हरगिज़ न बताया जाए जिसे साड़ी छुपा सकती है। इससे कई पाप छुपाए जा सकते हैं।
अल्वा की बात पर फिदेल कास्त्रो ज़ोर से हंसे और उनकी कमर पर हाथ रखकर बोले कि मैं तुम्हें उठाकर भी बता सकता हूं कि तुम्हारा वज़न कितना है। अल्वा ने फिदेल को ऐसा करने से मना किया। बोलीं- यॉर एक्सलेंसी आप ऐसा मत करिए. आप जितना सोचते हैं उससे मैं कहीं ज़्यादा भारी हूँ। इससे पहले कि वाक्य पूरा हो पाता अल्वा ज़मीन से एक फ़ुट ऊपर थीं। फिदेेल कास्त्रो ज़ोर से हंसे और बोले- अब मुझे मालूम है कि तुम्हारा वज़न कितना है। अल्वा बेचारीं शर्म से लाल हो गईं।
मारग्रेट अल्वा एक और किस्सा बताती हैं। एक बार फिदेल कास्त्रो ने उनसे पूछा कि स्पेनिश लोग क्यूबा में न उतर कर यदि भारत में उतरे होते तो इतिहास क्या होता? (कोलंबस ने क्यूबा खोजा था जबकि वो भारत खोज रहा था)। अल्वा ने तुरंत कहा कि तब आप भारतीय होते। ये बात सुनते ही फिदेल कास्त्रो ठहाका लगाने लगे। ज़ोर -ज़ोर से मेज़ थपथपाकर बोले कि ये मेरे लिए खुशकिस्मती की बात होती! भारत एक महान देश है।
मारग्रेट अल्वा का ही कहना है कि फिदेल कास्त्रो को काफी पहले ये पता चल गया था कि वीपी सिंह ने राजीव गांधी की कुर्सी पलटने की तैयारी कर ली है।अल्वा उस वक्त मैक्सिको गई थीं और जल्दबाज़ी में क्यूबा पहुंची थीं। ये वो दौर था जब वीपी को राजीव के बहुत करीब माना जाता था। फिदेल कास्त्रो की खुफिया एजेंसी बहुत तेज़ तर्रार थी और माना जाता है कि उसने ही कास्त्रो तक खबर पहुंचाई थी। मारग्रेट अल्वा ने ये बात अपनी किताब 'करेज ऐंड कमिंटमेंट' में लिखी है कि फिदेल कास्त्रो ने उनसे कहा था कि स्वदेश लौटकर राजीव को कहना कि अपने वित्तमंत्री पर भरोसा ना करें। वो खतरनाक है और भरोसे के काबिल नहीं है। वो राजीव की पीठ में छुरा घोंपेगा। बहरहाल मारग्रेट अल्वा ने उन्हें उलटा समझाने की कोशिश ही की। बाद में अल्वा ने ये बात राजीव को बताई तो राजीव भी हंसे और उल्टे मारग्रेट अल्वा से सवाल किया कि कास्त्रो भारत के बारे में क्या जानते हैं? आगे चलकर जब वीपी ने अपनी चाल चल दी तब मारग्रेट अल्वा ने राजीव को फिदेल कास्त्रो की चेतावनी याद दिलाई। वे चुप रह गए।
(जानकारी वन लाइफ इज़ नॉट एनफ,करेज ऐंड कमिंटमेंट, इंडियन एक्सप्रेस और बीबीसी से )
(इति इतिहास श्रृंखला)
शानदार
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