हाल बेनज़ीर कट्टरपंथी पाकिस्तान में ताज़ी हवा का झोंका बनकर आई थी। यूं उनके होते हुए पाकिस्तान और भारत के संबंध बहुत खुशनुमा तो कतई नहीं रहे लेकिन फिर भी एक महिला को शासन करते देख एक मानवीय संतोष होता रहा। ये तस्वीर उस 19 साल की बेनज़ीर की है जो अपने पिता से सियासत का ककहरा सीख रही थी। वो अमेरिका से छुट्टी में पाकिस्तान लौटी थी और पिता के साथ शिमला घूमने चली आईं। उस वक्त बांग्लादेश के मामले पर करारी चोट खाकर भुट्टो किसी समझौते की राह तलाशने हिंदुस्तान बुलाए गए थे। उन्होंने शिमला में इंदिरा गांधी से मुलाकातें की। साल 1972 था और महीना जून का था। भारतीय मीडिया की नज़र में बेनज़ीर चढ़ गई। बेनज़ीर ने खुद अपनी किताब में लिखा है कि कैसे उनके पिता ने उन्हें नसीहत दी थी कि इस यात्रा के दौरान मुस्कुराना मत। भुट्टो नहीं चाहते थे कि हार से आहत पाकिस्तान अपने नेता की बेटी को हंसता मुस्कुराता देखकर ये सोचे कि बेनज़ीर को मुल्क की हार का गम नहीं। इसके उलट भुट्टो ये भी नहीं चाहते थे कि वो उदास दिखे क्योंकि इससे ये संदेश जाता कि पाकिस्तानी खेमे में मातम है। बेचारी बेनज़ीर ने पहला कूटनीतिक दबाव इस दौरे में ही झेला था। खुद बेनज़ीर भुट्टो ने बताया कि जब वो शिमला में हेलीपैड पर उतरीं तो उनके अस्सलाम वालेकुम का जवाब इंदिरा ने नमस्ते से दिया था।
बेनज़ीर को इस दौरे पर मीडिया की इतनी तवज्जो मिली थी कि खुद उनके पिता हैरान थे। मीडिया में उनके कपड़ों पर चर्चा चल रही थी। कमाल ये है कि वो ये सारे कपड़े अपनी दोस्त से उधार लेकर आई थी। वजह यही थी कि बेनज़ीर पश्चिमी परिधान पहनती थी लेकिन हिंदुस्तान के दौरे पर उन्हें परंपरागत पोशाक पहननी थीं। बेनज़ीर ने इस बात का भी खूब ज़िक्र किया है कि इस दौरे में इंदिरा उन्हें जिस ढंग से लगातार ऑब्ज़र्व करती थीं उससे वो बहुत नर्वस हो जाती थी।
बेनज़ीर को इस दौरे पर मीडिया की इतनी तवज्जो मिली थी कि खुद उनके पिता हैरान थे। मीडिया में उनके कपड़ों पर चर्चा चल रही थी। कमाल ये है कि वो ये सारे कपड़े अपनी दोस्त से उधार लेकर आई थी। वजह यही थी कि बेनज़ीर पश्चिमी परिधान पहनती थी लेकिन हिंदुस्तान के दौरे पर उन्हें परंपरागत पोशाक पहननी थीं। बेनज़ीर ने इस बात का भी खूब ज़िक्र किया है कि इस दौरे में इंदिरा उन्हें जिस ढंग से लगातार ऑब्ज़र्व करती थीं उससे वो बहुत नर्वस हो जाती थी।
(जानकारी बेनज़ीर की आत्मकथा और बीबीसी से)
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