सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

इतिहास की किताब से निकली सबसे प्यारी तस्वीर..

इंटरनेट की गलियों से गुज़रते हुए एक बहुत प्यारी तस्वीर से सामना हुआ। तस्वीर आपके सामने पेश कर रहा हूं। दूसरे विश्व युद्ध का ज़माना था। सिपाही अपनी प्रेमिकाओं और पत्नियों को अलविदा कहकर ऐसे सफर पर निकल रहे थे जिससे लौट आने का कोई भी वादा झूठा साबित होना था। जंग से पहले विदाई की इस तस्वीर के साथ साहिर लुधियानवी साहब की मशहूर कविता 'खून फिर खून है' की चंद पंक्तियां साझा कर रहा हूं। युद्ध की हुंकार भरते दिमागों में कोई बात बैठाना यूं तो मुश्किल है, लेकिन इंसान का जीवन बदलावों की किताब है सो कोशिश अपनी मुसलसल जारी है। उम्मीद है कि तस्वीर और कविता आपको ठंडक पहुंचाएगी।
बम घरों पर गिरें या सरहद पर
रूहे–तामीर ज़ख्म खाती है
खेत अपने जले कि औरों के
ज़ीस्त फ़ाकों से तिलमिलाती है..
जंग तो खुद ही एक मअसला है
जंग क्या मअसलों का हल देगी
आग और खून आज बख्शेगी
भूख और अहतयाज कल देगी..
बरतरी के सुबूत की खातिर
खूँ बहाना ही क्या ज़रूरी है
घर की तारीकियाँ मिटाने को
घर जलाना ही क्या ज़रूरी है..
इसलिए, ऐ शरीफ़ इंसानों!
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
शम्मां जलती रहे तो बेहतर है..

(इति इतिहास श्रृंखला)

1 टिप्पणी:

  1. अजीब विडम्बना हैं कि हम शांति के लिए युद्ध करते है..तस्वीर और कविता बेहद खुबसूरत हैं..

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