सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

इतिहास की किताब से निकली सबसे दर्दनाक तस्वीर..

‘’मैंने एक दस साल के लड़के को आते देखा। वो एक छोटे बच्चे को पीठ पर लादे हुए था। उन दिनों जापान में अपने छोटे भाई-बहनों को खिलाने के लिए अक्सर बच्चे ऐसा करते ही थे, लेकिन ये लड़का अलग था। वो लड़का यहां एक अहम वजह से आया था। उसने जूते नहीं पहने थे। चेहरा एकदम सख्त था। उसकी पीठ पर लदे बच्चे का सिर पीछे की तरफ लुढ़का था मानो गहरी नींद में हो। लड़का उस जगह पर पांच से दस मिनट तक खड़ा रहा। इसके बाद सफेद मास्क पहने कुछ आदमी उसकी तरफ बढ़े और चुपचाप उस रस्सी को खोल दिया जिसके सहारे बच्चा लड़के की पीठ से टिका था। मैंने तभी ध्यान दिया कि बच्चा पहले से ही मरा हुआ था। उन आदमियों ने निर्जीव शरीर को आग के हवाले कर दिया। लड़का बिना हिले सीधा खड़ा होकर लपटें देखता रहा। वो अपने निचले होंठ को इतनी बुरी तरह काट रहा था कि खून दिखाई देने लगा। लपटें ऐसे धीमी पड़ने लगी जैसे छिपता सूरज मद्धम पड़ने लगता है। लड़का मुड़ा और चुपचाप धीरे धीरे चला गया। ‘’



जो तस्वीर आप देख रहे हैं ये उस तस्वीर की ही कहानी है। कहानी बतानेवाले शख्स थे जो ओ डोनल। डोनल को अमेरिकी सेना ने द्वीतीय विश्व युद्ध में जापान भेजा था ताकि वो वहां जाकर अपने कैमरे में उस विभीषिका को कैद कर सकें जिसे खुद अमेरिका ने फैलाया था। इस तस्वीर को डोनल ने नागासाकी में खींचा था। साल 1945 रहा होगा, क्योंकि डोनल ने सात महीनों तक पूरे पश्चिमी जापान में घूमकर विनाशलीला को तस्वीरों में कैद किया था। इस दौरान उनकी तस्वीरों में मानव इतिहास का सबसे भयावह और दर्दनाक दौर कैद हुआ था। लाश, घायल लोग, अनाथ बच्चे, बेघर परिवार.. चारों तरफ जापान में सिर्फ यही था।
सालों बाद जो ओ डोनल से एक जापनी पत्रकार ने इंटरव्यू लिया था। तब उन्होंने इस तस्वीर की जो कहानी बयां की थी वही मैंने ऊपर लिखी है।
कहीं पढ़ा था कि 1988 में आई जापानी फिल्म ‘ग्रेव ऑफ द फायरफ्लाइज़’ में बिलकुल ऐसी ही कहानी फिल्माई गई थी। वो फिल्म एक जवान भाई और उसकी छोटी बहन के बारे में थी जो द्वितीय विश्वयुद्ध में अपनी जान बचाने का कड़ा संघर्ष करते हैं।


(इति इतिहास श्रृंखला)

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