मुझे रोता ना देखे कोई .. मज़ाक अपना उड़ाता रहा मैं
महफिलें हुई कब किसी की जो मिला खंज़र लिए मिला
भीड़ से निकला तो हर बार पीठ के ज़ख्म छुपाता रहा मैं
शहरों की चमक कस्बों की चाल गांव का रंग भी देखा है
हर जगह से ऊबा और अल्लाह की मर्ज़ी बताता रहा मैं
एतबार की कीमत मैंने चुकाई हैं अकेले में रोकर गुलाब
किसी पर भरोसा करने से मुद्दतों खुद को बचाता रहा मैं
वो कहते रहे कि अब मिले हो तो आओ कुछ अपनी भी कहो
कुछ तो कहता क्या आंसू के समंदर कोरों में छिपाता रहा मैं
(6-7-2014... सुबह 4.40)
ग़म ना कहे किसी से.. किस्से दिल्लगी के सुनाता रहा मैं
महफिलें हुई कब किसी की जो मिला खंज़र लिए मिला
भीड़ से निकला तो हर बार पीठ के ज़ख्म छुपाता रहा मैं
शहरों की चमक कस्बों की चाल गांव का रंग भी देखा है
हर जगह से ऊबा और अल्लाह की मर्ज़ी बताता रहा मैं
एतबार की कीमत मैंने चुकाई हैं अकेले में रोकर गुलाब
किसी पर भरोसा करने से मुद्दतों खुद को बचाता रहा मैं
वो कहते रहे कि अब मिले हो तो आओ कुछ अपनी भी कहो
कुछ तो कहता क्या आंसू के समंदर कोरों में छिपाता रहा मैं
(6-7-2014... सुबह 4.40)
एतबार की कीमत मैंने चुकाई हैं अकेले में रोकर गुलाब
जवाब देंहटाएंकिसी पर भरोसा करने से मुद्दतों खुद को बचाता रहा मैं''
बेहतरीन लिखते हो नितिन भइया..
दो बार पढ़ने के बाद भी इस लाइन का अपना आकर्षण है जो ख़त्म नहीं होता ....